राजनीतिक व्यंग्य: राजा और फकीर दोनों खुश हुए।

राजा ने फकीर को बताया कि धन का लेन-देन बस सुनने में अच्छा लगता है। असली लेन-देन तो खुशी की है।


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राजनीतिक व्यंग्य राजा और फकीर दोनों खुश हुए।

एक बार राजा के दरबार में एक फ़कीर गाना गाने जाता है,
फ़कीर बहुत अच्छा गाना गाता है।
राजा अपने वजीर से कहते हैं
“इसे खूब सारा सोना दे दो।”

-फ़कीर और अच्छा गाता है।
राजा कहते हैं :-
“इसे हीरे जवाहरात भी दे दो।”

-फकीर और अच्छा गाता है।
राजा कहते हैं :-
इसे अशरफियाँ भी दे दो।

-फ़कीर और अच्छा गाता है।
राजा कहते हैं :-
इसे खूब सारी ज़मीन भी दे दो।

फ़कीर गाना गा कर घर चला जाता है
और
अपने बीबी बच्चों से कहता है,
आज हमारे राजा जी ने मेरे गाने से खुश होकर खूब सारे इनाम घोषित किये हैं :-
हीरे, जवाहरात, सोना, ज़मीन, अरफियाँ बहुत कुछ दिया।

-सब बहुत खुश होते हैं
कुछ दिन बीते,
फ़कीर को अभी तक मिलने वाला इनाम नहीं पहुँचा था…

-फ़कीर दरवार में पता करने पहुँचा…
कहने लगा……
राजा जी आप के द्वारा दिया गया इनाम मुझे अभी तक नहीं मिला ?

राजा कहते हैं ….
अरे फ़कीर
ये लेन-देन की बात में कुछ नहीं रखा है।

तू मेरे कानों को खुश करता रहा…
और
मैं तेरे कानों को खुश करता रहा।

Sitesh Choudhary

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Sitesh Choudhary
नमस्कार मैथिल, हम छी सीतेश चौधरी। हम कंटेंट क्रिएटर छी आ डिजिटल एडवर्टाइजमेंट एजेंसीक संचालक सेहो। पत्रकारिता सऽ लगाव सेहो राखैत छी। एहि माध्यमे हमर प्रयासमे समस्त अपन मिथिलांगन परिवारक सहयोग अपेक्षित अछि। धन्यवाद।

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