Mithila Art Rakhis | खादी पेपर से बनीं राखियां: नबिता झा की नई क्रांति

Mithila Art Rakhis | दरभंगा की नबिता झा की खादी पेपर और प्राकृतिक रंगों से बनी राखियों की बढ़ती मांग, मिथिला पेंटिंग के अनूठे संगम से रोजगार के नए अवसरों का सृजन।


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Mithila Art Rakhis | मिथिला पेंटिंग से बनी राखियां: नबिता झा की सफलता कहानी

दरभंगा की नबिता झा: खादी पेपर और प्राकृतिक रंगों से बनी राखियों की बढ़ती मांग

दरभंगा, 17 अगस्त 2024 – दरभंगा जिले के कंसी गाँव की रहने वाली नबिता झा द्वारा बनाई गई राखियां आजकल चर्चा में हैं। ये राखियां खास खादी पेपर और प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती हैं, और इस बार राखी के त्योहार पर इनकी मांग आसमान छू रही है। नबिता झा का ये हुनर, मिथिला पेंटिंग की पारंपरिक कला के साथ-साथ खादी पेपर का प्रयोग, इन राखियों को विशेष बनाता है।

राखियों की अनूठी डिजाइन और मांग | Mithila Art Rakhis

नबिता झा की राखियों की डिजाइनों में पारंपरिक कला की झलक मिलती है। ये राखियां न सिर्फ दरभंगा जिले में, बल्कि देशभर में पसंद की जा रही हैं।

  • खादी पेपर: नबिता झा खादी पेपर का इस्तेमाल करती हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल है।
  • प्राकृतिक रंग: प्राकृतिक रंगों का प्रयोग उनकी राखियों को और भी आकर्षक बनाता है।
  • मिथिला पेंटिंग: मिथिला पेंटिंग का बेहतरीन उपयोग, जो हर राखी को अनूठा बनाता है।

इन राखियों की मांग दिल्ली, पांडिचेरी, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तेजी से बढ़ रही है। इसके अलावा, इंग्लैंड और बार्सिलोना जैसे विदेशी बाजारों में भी नबिता की राखियों का बोलबाला है।

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मिथिला पेंटिंग: एक नई राह | Mithila Art Rakhis

मिथिला पेंटिंग, जिसे दुनिया भर में मधुबनी पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है, नबिता झा के जीवन का एक अहम हिस्सा है। उनकी माँ, बौआ देवी, जो खुद एक प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार विजेता हैं, ने नबिता को इस कला की प्रेरणा और प्रशिक्षण दिया।

  • बौआ देवी: मधुबनी जिले के जितवारपुर गाँव की निवासी, बौआ देवी को 1976 में राष्ट्रीय पुरस्कार और 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
  • नबिता का योगदान: नबिता ने न केवल अपनी माँ की कला को आत्मसात किया, बल्कि इसे और भी उन्नत बनाया।

रोजगार की संभावनाएं | Mithila Art Rakhis

नबिता झा का मानना है कि मिथिला पेंटिंग के माध्यम से बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार मिल सकता है। उन्होंने इस कला को एक नए आयाम तक पहुँचाया है, जो युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुका है।

दरभंगा जिला परियोजना प्रबंधक (डीपीएम) डॉ. ऋचा गार्गी ने कहा, “मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। इस कला का हर जगह सम्मान हो रहा है और यही कारण है कि आज के युवा मिथिला पेंटिंग की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।”

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जीविका समूह के साथ जुड़ाव | Mithila Art Rakhis

नबिता झा भगवती जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं। उनके प्रयासों से यह कला न सिर्फ देश के विभिन्न हिस्सों में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो रही है। जीविका द्वारा उन्हें विभिन्न मेलों में स्टॉल प्रदान किए जाते हैं, जहाँ वे अपनी कलाकृतियों को बेचकर अपनी जीविका चला रही हैं।

  • स्टॉल और मेलों में भागीदारी: जीविका द्वारा दी गई सुविधा से नबिता अपनी कला को व्यापक स्तर पर प्रस्तुत कर रही हैं।
  • आर्थिक सम्बल: खादी पेपर और प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर बनाई गई राखियों के माध्यम से नबिता को आर्थिक सम्बल मिल रहा है।

एक प्रेरणा स्रोत | Mithila Art Rakhis

नबिता झा की यह यात्रा न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन में सफलताओं की कहानी है, बल्कि यह मिथिला पेंटिंग की समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाने का एक प्रयास भी है। उन्होंने साबित कर दिया है कि पारंपरिक कलाओं के माध्यम से भी वैश्विक पहचान बनाई जा सकती है।

“मिथिला की यह बेमिसाल कला पूरी दुनिया में अपनी जगह बना सकती है, बशर्ते इसे सही दिशा और प्रोत्साहन मिले,” नबिता झा कहती हैं। उनका यह प्रयास मिथिला पेंटिंग की कला का एक और अनुपम उदाहरण है, जो न सिर्फ उन्हें आर्थिक सम्बल प्रदान कर रहा है बल्कि इस कला की माँग को भी बढ़ा रहा है।

मिथिला पेंटिंग और खादी पेपर का संगम | Mithila Art Rakhis

नबिता झा का यह अनूठा प्रयोग, जहाँ खादी पेपर और मिथिला पेंटिंग का संगम देखने को मिलता है, इस कला को एक नई दिशा दे रहा है। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक कला नहीं है, बल्कि एक संजीवनी है, जो युवा पीढ़ी को आर्थिक स्वतंत्रता दिलाने का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

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  • खादी पेपर: पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ।
  • प्राकृतिक रंग: आकर्षक और पारंपरिक।
  • मिथिला पेंटिंग: एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर।

नबिता झा अब केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि एक प्रेरणा स्रोत हैं, जिन्होंने पारंपरिक कला को एक नए मुकाम तक पहुँचाया है। उनके प्रयासों ने यह साबित कर दिया है कि सही दिशा और प्रोत्साहन के साथ कोई भी कला वैश्विक पहचान बना सकती है।

उदाहरण:

कलाउपयोगप्रभाव
खादी पेपरराखियों का निर्माणपर्यावरण अनुकूल और टिकाऊ
प्राकृतिक रंगडिजाइन मेंआकर्षक और पारंपरिक
मिथिला पेंटिंगकला का संगमसांस्कृतिक धरोहर की रक्षा

नबिता झा के प्रयास मिथिला पेंटिंग को एक नई पहचान दिलाने में सफल हो रहे हैं। उनके द्वारा बनाई गई राखियां न केवल एक पारंपरिक कला का प्रतीक हैं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत भी हैं।

निष्कर्ष | Mithila Art Rakhis

नबिता झा की यह कहानी दरभंगा जिले से निकलकर दुनिया भर में फैल चुकी है। उनकी राखियां आज सिर्फ राखियां नहीं, बल्कि कला की एक जीवंत पहचान बन चुकी हैं।

“हमारी कला हमारी पहचान है, और इसे हमें सहेजकर रखना है,” नबिता झा के ये शब्द उनकी सोच और दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। उनका यह प्रयास आज के युवाओं के लिए एक उदाहरण है कि कैसे पारंपरिक कला को आधुनिकता के साथ जोड़ा जा सकता है।

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Gyanesh Choudhary
अपन मिथिलांगन परिवार के सभी सदस्यों का हार्दिक अभिनन्दन। मैं Gyanesh Choudhary पेशा से व्यवसायी हूं। मैं पत्रकारिता में भी रूचि रखता हूं। दरभंगा प्रक्षेत्र की सही ख़बरों के लिए आप मेरे पोस्ट्स पढ़ें, शेयर करें।

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