मध्य प्रदेश के सिलपाड़ी गांव की एक आदिवासी महिला लहरी बाई की प्रेरक कहानी।
लहरी बाई मध्य प्रदेश के सिलपाड़ी गांव की एक बैगा आदिवासी महिला हैं, जो अपने माता-पिता के साथ दो कमरे के एक घर में रहती हैं। जहां एक कमरा लिविंग रूम और किचन की तरह इस्तेमाल किया जाता है; वहीं दूसरे कमरे को बीज बैंक में बदल दिया गया है, जिसमें उन्होंने कोदो, कुटकी, सनवा, मढ़िया, सालहर और काग सहित बाजरा के लगभग 150 से ज़्यादा दुर्लभ बीजों को संरक्षित रखा है।
लहरी बाई इन बीजों को अपनी ज़मीन पर उगाती हैं, फिर उससे जो बीज मिलते हैं, वह उन्हें अपने गाँव के किसानों और आस-पास के 15 गाँवों में बाँट देती हैं। वह बीज बांटने का काम मुफ़्त में करती हैं, लेकिन कई बार इसके बदले किसान उन्हें अपनी फसल का कुछ हिस्सा दे देते हैं।
लहरी बाई को जोधपुर आईसीएआर की 10 लाख रुपये की स्कॉलरशिप के लिए नॉमिनेट करने वाले डिंडोरी के जिला कलेक्टर विकास मिश्रा कहते हैं- "अगर उन्हें स्कॉलरशिप मिलती है, तो लहरी बाई पीएचडी छात्रों को इन बीजों की जानकारी देती नज़र आएगी।"
Sitesh Choudhary
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