एक ट्रेन हो गई गुम और कान खड़े हो गए थे अमेरिका, रूस और चीन की सुरक्षा एजेंसियों की।

असम के तिनसुकिया में हो गई थी एक ट्रेन गुम और कान खड़े हो गए थे अमेरिका, रूस और चीन की सुरक्षा एजेंसियों की।


ek tren ho gee gum aur kan khade ho ge the amerika roos aur cheen kee surksha ejensiyon kee jpg

एक ट्रेन हो गई गुम और कान खड़े हो गए थे अमेरिका, रूस और चीन की सुरक्षा एजेंसियों की।

जानिए एक बड़ी रोचक कहानी……….
वो पूरी ट्रेन लगभग 43 वर्षों तक गायब रही और उसे ढूंढा अमेरिका से लेकर चीन की खुफिया एजेंसियों ने, जिसमें नासा भी शामिल था।

असम के तिनसुकिया नामक स्थान से गायब हुई रहस्यमई ट्रेन के लिए आपको पहले अमेरिका चलना होगा। 5 दिसंबर 2019 को अमेरिका की नासा के उपग्रहों ने भारत के ऊपर एक चित्र खींचा। उस वक्त वे एशिया अफ्रीका क्षेत्र में जंगल पर वन मानचित्र बनाने के काम पर थे। 

उपग्रह ने उनको भारत के असम से एक ट्रेन के रेक की कुछ अस्पष्ट, जंगलों में छिपी हुई और बहुत धुंधली अपरिचित तस्वीरें भेजी। नासा की सुरक्षा एजेंसी ने जब इन फोटो का एनालिसिस किया तो उनको ये संदेह हुआ कि भारत ने असम में अरुणाचल बॉर्डर  'रेल मोबाइल' ICBM ( intercontinental ballistic missile) के लिए एक ट्रेन रेक को छुपा रखा है। 

संदेह होते ही इन फोटो और संदेश को तत्काल पेंटागन हाउस भेज दिया गया। अमेरिका की तमाम सुरक्षा एजेंसी के कान खड़े हो गए। असम, अरुणाचल बॉर्डर पर जासूसी उपग्रहों को केंद्रित कर दिया गया। लेकिन, अभी कई जबरदस्त और रोचक खेल शुरू होने बाकी थे। 

पेंटागन हाउस में रूसी और चीनी डबल एजेंटों ने नासा द्वारा खोजी गई CBM Train के बारे में रूस और चीन जासूसों को भी बता दिया। रूस और चीन ने भी अपने-अपने उपग्रहों को असम, अरुणाचल बॉर्डर पर केंद्रित कर दिया कि भारत किस देश के लिए, किस प्रकार का मिसाइल, कहाँ छुपा कर रखा है, और उसका इरादा क्या है? 

इधर, भारत में ISRO, NTRO ने नोट किया कि इस क्षेत्र में अमेरिका, रूस, चीन के उपग्रहों की असामान्य गतिविधियां अचानक बढ़ गई है और ये खबर उन्होंने भारतीय खुफिया एजेंसियों को भेज दी। चूंकि, मामला अंतर्राष्ट्रीय था, इसलिए NSA और RAW भी एक्शन में आ गए। रॉ ने रूस और चीन में उनके लिए काम कर रहे एजेंटों से पता लगा लिया कि असम और अरुणाचल बॉर्डर पर सीरेल मोबाइल' ICBM ( Intercontinental ballistic missile) के लिए एक ट्रेन रेक देखा गया है। 

जैसे ही, भारत सरकार को ये सूचना मिली, वे सदमे में रह गए। उनको बड़ा खतरा नजर आने लगा क्योंकि भारत ने कुछ भी ऐसा छिपाकर नहीं रखा था? अब सबसे बड़ा सवाल ये उठा कि क्या किसी आतंकवादी संगठन या विदेशी शक्तियों ने यहां गुप्त अड्डा स्थापित कर लिया है? 

सारे मुख्य सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया गया और मीटिंग शुरू हुई। जिसमें PMO , DIA (रक्षा खुफिया एजेंसी), NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी), MOD (रक्षा मंत्रालय) और CCS (कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी) शामिल हो गये। IHQ, सैन्य अंतरिक्ष कमान और SFC (रणनीतिक बल कमान) सभी ने असम अरुणाचल बॉर्डर पर  किसी भी ट्रेन/रेक की नियुक्ति या छिपा कर रखने से इंकार कर दिया। 

इन सुरक्षा एजेंसियों ने हवाई रेकी और स्वयं के उपग्रहों, IAF और ARC (विमानन अनुसंधान केंद्र) ने भी जांच की। उपग्रहों से ली गई तस्वीरों से पुष्टि हुई कि वाकई में यहां एक अच्छी तरह से छिपा हुआ ट्रैन रेक मौजूद है। खबर की पुष्टि होते ही NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी) के कार्यालय से एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी को एक गुप्त ऑपरेशन के लिए इस साइट पर भेजा गया। 

स्थिति की गंभीरता देखते हुए मार्कोस और गरुड़ सहित एसएफ (special Forces) की एक ग्राउंड पार्टी को भी साथ देने के लिए तैयारी पर रखा कि पता नहीं कहाँ से मिसाइल आ जाए? अब असली धमाका सामने आने वाला था।

तिनसुकिया गुवाहाटी से लगभग 480 किलोमीटर उत्तर पूर्व और अरुणाचल सीमा से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। जब वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी इसे पिन प्वाइंट करते हुए असम से तिनसुकिया से 40 किलोमीटर दूर एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो सच्चाई सामने आ गई। 

हुआ यूं था कि 16 जून 1976 को सुबह 11:08 बजे एक ट्रेन असम के तिनसुकिया के एक छोटे से स्टेशन में पहुंचा। 1976 में ये एक सामान्य बात थी कि छोटे स्टेशन पर प्लेटफार्मों के साथ समान लोडिंग और अनलोडिंग के लिए कोई जगह उपलब्ध नहीं होने पर इंजन से यात्री डब्बों को अलग करके मुख्य स्टेशन पर छोड़ देते थे और माल डब्बों वाले रैक को दूर बने यार्ड में ले जाकर समान चढ़ाने या उतारने का काम होता था। उस दिन भी ऐसा ही हुआ था। 

उसी दिन सुबह 11:31 बजे भारी बारिश हुई और पानी का सैलाब उफान पड़ा। बाढ़ आ गई।  पूरा स्टेशन 5 से 6 फीट पानी में डूब गया। सभी यात्री उतर चुके थे। स्टेशन और रेलवे ट्रैक पर पानी भरने के कारण वे उसमें फंसने लगे।  स्थानीय ग्रामीणों की मदद से यातत्री पैदल रेलवे ट्रैक के किनारे से सुरक्षित स्थानों पर चले गए। 

कई दिनों बाद पानी का स्तर घटा। इस अवधि के दौरान स्टेशन मास्टर और कुछ कर्मचारी भी पोस्टिंग पर बाहर चले गए। इस बीच लोग उस अलग किए गए रेक के बारे में भूल गए क्योंकि यह मुख्य स्टेशन से लगभग 2 किलोमीटर दूर एक अलग-थलग साइडिंग पर और सुनसान जगह पर था। 

धीरे-धीरे झाड़ – झंखाड़ और जंगलों ने  पूरे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। इस साइडिंग, ट्रैन, रैक पर झाड़ियों, लताओं का कब्जा हो गया।  साँपों, पक्षियों और जंगली जानवरों ने उसमें अपना घर बना लिया। समय गुजरता गया। अधिकांश पुराने रेलवे कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए। अन्य का निधन हो गया।  किसी को ट्रेन की याद नहीं रही। इंजन ड्राइवर डैनियल स्मिथ सितंबर 1976 में ऑस्ट्रेलिया चले गए और ट्रेन अनजान रूप से पड़ी रही।

इस तरह 18 दिसंबर 2019 को मुख्य तिनसुकिया से लगभग 40 किमी दूर एक छोटे स्टेशन पर पड़ा हुआ पाया गया था। अब आप पूरी कहानी जान चुके कि खोदा पहाड़, निकली चुहिया। इस खबर से अमेरिका, रूस, चीन और भारत सरकार का टेंशन दूर हुआ। अंत भला, तो सब भला। यह है खोई हुई ट्रेन की कहानी। अविश्वसनीय, लेकिन बिल्कुल सच!

Sitesh Choudhary

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