Shriprakash Shukla की पहचान में धीरेंद्र सिंह का राज!
आप देख रहे हैं अपराध की कहानियों की श्रृंखला। आज हम बात करेंगे श्रीप्रकाश शुक्ला की, जो बिहार और यूपी के सबसे बड़े गैंगस्टर थे। सितंबर 1998 में यूपी एसटीएफ ने उन्हें मुठभेड़ में मार गिराया था, लेकिन उनकी कहानियां खत्म नहीं होतीं। हाल ही में, यूपी एसटीएफ के अधिकारी आईपीएस राजेश पांडे की किताब वर्चस्व में कुछ नई जानकारियाँ सामने आई हैं।
Shriprakash Shukla की उपस्थिति: एक संक्षिप्त इतिहास
- 1995-1998: श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम अपराध की दुनिया में छाया रहा।
- 1998: यूपी एसटीएफ ने मुठभेड़ में शुक्ला को मार गिराया।
वर्चस्व: नई जानकारियाँ
आईपीएस राजेश पांडे की किताब वर्चस्व में कई खुलासे हुए हैं। इनमें से कई तथ्य विवादित हैं क्योंकि:
- बिहार कनेक्शन: पांडे के खुलासे में बिहार कनेक्शन की अनदेखी की गई है।
- एसटीएफ की चुनौतियाँ: एसटीएफ ने शुक्ला के खिलाफ कई ऑपरेशन चलाए, लेकिन कुछ पुलिस अधिकारी उनकी राह में बाधा डाल रहे थे।
पुलिस की दिक्कतें
जब यूपी एसटीएफ Shriprakash Shukla के करीब पहुँच रही थी, तो कई अपवाह फैलाए गए:
- सिंगापुर के सफर: अफवाह थी कि शुक्ला सिंगापुर चला गया है और प्लास्टिक सर्जरी करवा ली है।
- पहचान में समस्या: शुक्ला की इकलौती तस्वीर एसटीएफ ने उसकी बहन के घर से बरामद की थी।
ह्यूमन इंटेलिजेंस का संकट
- मुखबिरों की कमी: शुक्ला का खौफ इतना था कि मुखबिर सामने नहीं आ रहे थे।
- तकनीकी सर्विलांस: शुक्ला को यह नहीं पता था कि मोबाइल फोन भी ट्रैक किया जा सकता है, जो उसकी मौत का कारण बना।
धीरेंद्र सिंह की पहचान
हालांकि शुक्ला की पहचान में कई मुश्किलें थीं, लेकिन एक व्यक्ति ऐसा था जो Shriprakash Shukla को पहचान सकता था:
- धीरेंद्र सिंह: उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर का निवासी।
- एसटीएफ की खोज: एसटीएफ ने धीरेंद्र सिंह को जेल भेजा और फिर अपने साथ रखा।
एसटीएफ की चुनौती
- मकामा ऑपरेशन: जब एसटीएफ ने सुना कि शुक्ला, अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी मकामा में हैं, तो एयरलिफ्ट की योजना बनाई गई।
- पटना पुलिस का सहयोग: पटना पुलिस के एसएसपी मुरारी लाल मीना ने एसटीएफ को सहयोग किया।
आखिरी रेड
- गौरवमयी रेड: एसटीएफ ने मकामा के शंकर बार टोला में रेड की योजना बनाई।
- सुरक्षा समस्याएँ: मुरारी लाल मीना ने रात में रेड करने की सलाह नहीं दी क्योंकि गैंग बार चल रहा था।
कहानी का समापन
एसटीएफ ने शंकर बार टोला में जाकर पाया कि हर घर की छत पर निगरानी हो रही थी। यह इलाका अपराध की निगरानी के लिए जाना जाता था।
उपसंहार
धीरेंद्र सिंह की पहचान ने एसटीएफ को Shriprakash Shukla और उसके साथियों को पकड़ने में मदद की। यह कहानी बताती है कि कैसे एक व्यक्ति की पहचान भी बड़े अपराधी के खिलाफ निर्णायक साबित हो सकती है।
उद्धरण
“Shriprakash Shukla का खौफ इतना था कि ह्यूमन इंटेलिजेंस काम नहीं आ रहा था।”
तालिका: प्रमुख घटनाएँ
घटना | तिथि | विवरण |
---|---|---|
Shriprakash Shukla की मुठभेड़ | सितंबर 1998 | यूपी एसटीएफ ने मार गिराया |
वर्चस्व की किताब | हाल ही में | आईपीएस राजेश पांडे द्वारा लिखी गई |
धीरेंद्र सिंह की पहचान | 1998 | शुक्ला को पहचानने वाला महत्वपूर्ण व्यक्ति |
इस समाचार के माध्यम से हमने Shriprakash Shukla की कहानी और धीरेंद्र सिंह की भूमिका को उजागर किया है। आपको हमारे कंटेंट के बारे में क्या राय है? कृपया हमें बताएं।
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