Reservation Controversy | बिहार में आरक्षण विवाद: चिराग पासवान और मांझी आमने-सामने!
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसके तहत राज्यों को आरक्षण के लिए ‘कोटे के भीतर कोटा’ बनाने का अधिकार मिल गया है। इस फैसले ने बिहार में सियासी हलचल को जन्म दे दिया है, जहां एनडीए के दो सहयोगी दल—चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और जीतन राम मांझी की हम पार्टी—बीजेपी और जेडीयू के मौन के बीच आमने-सामने आ गए हैं।
Supreme Court’s Decision on Reservation | Reservation Controversy
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने 2004 के अपने पुराने निर्णय को पलट दिया है, जिससे राज्य सरकारें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के भीतर सब-कैटेगरी बना सकती हैं। यह निर्णय राज्य विधानसभाओं को कानून बनाने की क्षमता प्रदान करता है, जिससे विशेष उप-श्रेणियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जा सके।
Political Fallout in Bihar | Reservation Controversy
चिराग पासवान की स्थिति
चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया है। उनके अनुसार, यह निर्णय SC और ST समुदायों में भेदभाव को जन्म दे सकता है। चिराग पासवान ने इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है ताकि समाज को कमजोर नहीं किया जा सके।
- चिराग पासवान की टिप्पणी:“हम सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का समर्थन नहीं करते। SC और ST में किसी भी प्रकार की भेदभाव से समाज को नुकसान होगा।”
जीतन राम मांझी की प्रतिक्रिया | Reservation Controversy
वहीं, केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने कोर्ट के फैसले को दलितों के हित में बताया और इसे 10 साल पहले आना चाहिए था। उनके अनुसार, यह निर्णय अनुसूचित जातियों के भीतर भेदभाव को खत्म करने में मदद करेगा।
- जीतन राम मांझी की टिप्पणी:“यह फैसला दलितों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। हमें इस पर गर्व है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को सही तरीके से देखा।”
Implications of the ‘Quota within Quota’ Decision | Reservation Controversy
What is ‘Quota within Quota’?
‘Quota within Quota’ का मतलब है कि आरक्षण के तहत पहले से आवंटित श्रेणी के भीतर अलग-अलग उप-श्रेणियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है। इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों को अधिक लाभ प्रदान करना है।
- उदाहरण:
- अनुसूचित जाति के भीतर विशेष समूहों को अतिरिक्त आरक्षण मिल सकता है।
- यह सुनिश्चित करेगा कि सबसे पिछड़े और जरूरतमंद समूहों को अधिक प्रतिनिधित्व और लाभ प्राप्त हो।
Supreme Court’s Ruling | Reservation Controversy
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय राज्यों को यह अधिकार देता है कि वे अनुसूचित जातियों और जनजातियों के भीतर सब-कैटेगरी बना सकें। लेकिन यदि कोई राज्य एक श्रेणी को 100% आरक्षण प्रदान करता है, तो यह अन्य श्रेणियों के लाभ को प्रभावित कर सकता है।
Political Dynamics in Bihar | Reservation Controversy
Chirag Paswan’s Political Strategy
चिराग पासवान की पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है और अब उनकी नजर विधानसभा चुनाव पर है। वे इस फैसले के खिलाफ हैं और इसे दलित राजनीति के लिए हानिकारक मानते हैं।
Jitanram Manjhi’s Political Ambitions
जीतन राम मांझी, जिनकी पार्टी हम ने बिहार में दलित राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बनाया है, चाहते हैं कि उनकी पार्टी का प्रभाव चिराग पासवान की पार्टी से बड़ा हो। वे आरक्षण के मुद्दे को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
Expert Opinions | Reservation Controversy
वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शी रंजन के अनुसार, जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के बीच यह विवाद बिहार की दलित राजनीति को प्रभावित कर रहा है।
- प्रियदर्शी रंजन की टिप्पणी:“आरक्षण के मुद्दे पर दोनों नेताओं की बयानबाजी बिहार की राजनीति में बड़ा असर डाल सकती है।”
Summary of the Issue | Reservation Controversy
सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय ‘कोटे के भीतर कोटा’ के लागू होने के साथ ही राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के भीतर विशेष श्रेणियों के लिए आरक्षण देने का अधिकार मिला है। यह निर्णय दलित राजनीति में नए समीकरणों को जन्म देगा और बिहार की सियासत में नई दिशा देगा।
- Important Points:
- सुप्रीम कोर्ट ने पुराने फैसले को पलटा।
- राज्यों को सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार।
- चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के बीच सियासी संघर्ष।
Sitesh Choudhary
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